Neha Chowdhary

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घर की लक्ष्मी...बेटियाँ...!

सुबह के साढ़े सात बजे थें। शांतनु जी को चाय दे, अपनी चाय की प्याली लेकर सुगंधा जी बाल्कनी में आयीं ही थी कि डोरबेल घनघना उठी! 

पहलें तो उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया....सुबह की इस वक्त की चाय पर डिस्टर्ब होना उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं था!उन्हें लगा कचरे वाला पैसे लेने आया होगा....पर जब दुबारा बेल बजी तो वे चिढ़ गई! 

कर दिया चाय के मज़े को सत्यानाश! कौन हो सकता है इस वक्त??अपने आप में ही सवाल जवाब करतें हुए, सुगंधा जी ने दरवाज़ा खोला।

दरवाज़ा खुलते ही, उन पर गुलाब की पंखुडी की बरसात होने लगीं....!

हैप्पी बर्थडे टू यू!!!!हैप्पी बर्थडे टू यू!!!हैप्पी बर्थ डे टू यू.....मम्मा....हैप्पी बर्थडे टू यूऊऊऊ....!!

सुगंधा जी, भूल ही गयीं थी कि आज उनका जन्मदिन है!

दरअसल, कुछ दिन पहले, आफिस से आते समय एक कार वाले ने राँग साइड से ड्राइव करतें हुए, शांतनु जी को टक्कर मार दी थी...! संभालते संभालते भी उनका सर डिवाइडर से भीड़ गया था! माथा फट गया था उनका! जिस गाड़ी वाले ने टक्कर मारी थी उसी ने उन्हें नजदीक के हस्पताल में एडमिट कराया। ऐसे तो गहरी चोट नहीं थी पर मधुमेह होने के कारण घाव को सूखने भरने में काफ़ी समय लग रहा था!


जब से शांतनु जी का एक्सिडेंट हुआ है, तब से उनकी तीमारदारी में, सुगंधा जी ने दिन रात एक कर रखा था! न तो उन्हें खाने की सुधि थी न अपनें चैन और आराम की!तकरीबन बीस दिन हास्पीटल में रह कर, कल शांतनु जी घर आयें थे....और आज सुगंधा जी को घड़ी भर समय मिला था खुद के लिए!  

दरवाज़े पर खड़ी सुगंधा, शून्य में ताक़ रहीं थी कि तभी उनकी बेटी मानसी ने उन्हें कहा.....

जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ माँ.....और उन्हें गले से लगा लिया! 

अपनी बेटी का प्यार भरा स्पर्श पा, सुगंधा जी बच्चों की तरह रो पड़ी! मानसी, सुगंधा जी के दर्द को अच्छी तरह से समझ रहीं थीं!जिस तरह उन्होंने अकेले शांतनु जी को संभाला था वो काबिले तारीफ़ था....! पर सुगंधा जी को शांतनु जी को अकेले संभाल ने का दुख नहीं था! उनका दुख तो उससे कही बड़ा था!

माँ....देखों तो कौन आया है??मानसी ने सुगंधा जी को एक तरफ़ इशारा कर कहा।

सुगंधा जी ने आँसूओ से लबालब आँखे उठा कर देखा तो सामने उनकी बहु, रिद्धि खड़ी थीं! 

रिद्धिअअअ.....!मेरी बच्ची...!!!बाहें फैला दी, सुगंधा जी ने अपनी बहु के लिए!

माँआआआआ....दौड़ के आकर रिद्धि...सुगंधा जी के पैरों में गिर पड़ी!!

माँ....! माँ....!माँ....!मुझें माफ़ कर दो! मैं कुछ नहीं कर पायीं...आपके लिए....और पापा के लिए! 

अरेएएए....उठ बेटा....! सब ठीक है अबबब....तेरे पापा जी एकदम ठीक है....चलों अंदर चलों....आज सही मायनों में मेरे घर में खुशियाँ आयीं हैं....!अब कोई रोना धोना नहीं.....!

सुगंधा जी, मानसी और रिद्धि तीनों शांतनु जी के पास आ गयें.....

शांतनु जी, आँखे बंद किये लेटे थे... एक तरफ़ से मानसी ने और दूसरी तरफ से रिद्धि ने उनका हाथ पकड़ लिया....और एक साथ बोलीं.....

पापाआआआ.....!

शांतनु जी ने पुकार सुन चौंक कर आँखे खोली....!अपनी दोनों बेटियों को सामने देख वे ख़ुशी से भर उठे....!!

मानसीईईई.....! 

रिद्धिईईई.....!मेरे बच्चों....!!!

पापाआआआ.....दोनों शांतनु जी की हालत देख बिलख बिलख कर रो पड़ी....! 

चारों एक दूसरे से लिपट कर रो पड़े...! 

अरे....अब ज्यादा आँसू मत बहाओ....! वरना ये बुढ़ी...मुझें आँसू रोकने की भी दवाई दे देंगी....!सुबह शाम का नाश्ता करवाती है, दवाईयों का....! 

मैं नाश्ता करवाती हूँ....! मैंने कहा था जाकर सर फोड़ो...??बताओं....खुद ने जो परेशान कर रखा है, उसकी कोई बात ही नहीं है....और तो और ये तक भूल गयें कि आज मेरा जन्मदिन हैं.....!!!!

अरेएएए....हाँ....आज तो तुम्हारा जन्मदिन है....!कितने साल की हो गयीं मेरी बुढ़िया???अअअअ.....पचपन की....!!!

अरे बच्चों.....तुम्हारी माँ...पचपन की हो गयीं.....और मैं साठ का....! मतलब अब मैं....इलिजिबल हो गया....!ख़ुशी से चहकते हुए, शांतनु जी ने कहा 

किस बात के लिए.....???तीनों ने एक साथ पूछा

बताता हूँ ....बताता हूँ....!!!

अअअ....हहह...गला खंखारते हुए, शांतनु जी ने सुर छेड़े.....

अरे जब हम होंगे साठ साल की,
और तुम होंगी पचपन की....
बोलो प्रीत निभाओगी नाआआ....
तब भी मेरे बचपन की....!!!!

वाह-वाह....वाह-वाह....!क्या बात है....????मानसी और रिद्धि दोनों ने जहाँ शांतनु जी के गाने पर दाद दी....वहीं दूसरी ओर...सुगंधा जी का चेहरा शर्म से लाल हो उठा!!!

बस भी....आप भी ना....कुछ तो लिहाज़ करों अपनी उम्र का....! नाती पोते वाले हो गए हो....कोई इक्कीस साल के नवयुवक नहीं हो....!

इंसान को मन से जवान रहना चाहिए और मैं तो अभी...अठारह साल का हूँ....और उतना ही यंग, डैशिंग और चार्मिंग हूँ....जितना तुम्हें ब्याह कर लाया था...तब था....!सुगंधा जी का हाथ पकड़ते हुए, शांतनु जी ने कहा 

हटो जीईई.....!चलों बच्चों हाथ मुँह धो लो....!मैं तुम दोनों की पसंद का नाश्ता बनाती हूँ...! 

सुनों....मेरी पसंद का भी कुछ बनेगा???शांतनु जी ने बड़ी उम्मीद से पूछा

हाँ....बनेगी ना....करेले की सब्जी....!!सुगंधा जी ने तपाक से कहा और तुरंत ही रूम से बाहर निकल गयीं।

खडूस...बुढ़िया....!शांतनु जी ने बुरा सा मुँह बना कर बोला 

गलत बात पापा....!

जा ना...माँ की चमची....! 

पापाआआ.....!मानसी ने शांतनु जी को आँखे तरेर कर देखा...तो शांतनु जी ने उसे जीभ निकाल कर चिढ़ा दिया....!

कुछ देर बाद, रिद्धि फ़्रेश होकर किचन में आयीं, उसने देखा कि सुगंधा जी सबके लिए कुछ न कुछ बना रहीं है! रिद्धि उन्हें अपार स्नेह के साथ देख रहीं थीं।चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान लियें सुगंधा जी अपनें काम में मशरूफ थीं। रिद्धि ने सुगंधा जी को आवाज़ दी....माँ!

अरे आ गई बेटा....?आ बैठ...देख तेरे लिए अदरक इलायची की चाय बनाई है और नाश्ते में खस्ता कचोरी!
तु बैठ....मैं अभी देतीं हूँ खाने के लिए...सफ़र से आयीं है...कस के भूख लगीं होंगी!

हाँ माँ....! फ़िर कुछ रूक कर रिद्धि ने कहा....माँ! मुझें माफ़ कर दो....!कहतें कहतें रिद्धि की आवाज़ भरा गई!

रिद्धि की आवाज़ सुन....सुगंधा जी चौंक पड़ी! अरे बेटा क्या हुआ???रो क्यूँ रहीं हो??

माँआआआ...मानव के व्यवहार की वजह से मैं शर्मिंदा हूँ....!माँ....मेरा विश्वास करों मैं नहीं जानती कि मानव ने ऐसा क्यूँ किया.....???लोग़ कहतें है, मेरे सिखाने पर उन्होंने वो सब कहा था आपकों....! पर माँ....मैं सुमेध की कसम खाकर कहतीं हूँ.....मैंने मानव से कुछ नहीं कहा....कुछ भी नहीं.... ! कहतें कहतें रिद्धि के आँखो से आँसू छलक आएं!

  
मानव का नाम सुन, एकबारगी सुगंधा जी के हाथ रूक गयें और चेहरे पर दर्द की परछाई लहरा गई पर अगले ही पल उन्होंने खुद को संयत किया और रिद्धि से कहा, किसी का दोष नहीं है बेटा...! दोष मेरी परवरिश का है! जानतीं हो मानव जब छोटा था, तब मैं और तेरे पापाजी उसके लिए जो भी लाते थे न, वो अगले दिन जाकर बदली करवा कर ले आता था...!हमारी पसंद उसे कभी रास ही नहीं आयीं! 

जानतीं हो रिद्धि...जब इन्हें अटैक आया था ना...मानसी उर मैंने जानें कितनी रातें और कितने दिन हस्पताल में बिताएं थें! पर मानव, मानव एक बार खानापुर्ति करने आया और चला गया....क्यूँ...क्यूँकि उसके इम्तिहान नजदीक थें!गज़ब का जीवट है मेरा मानव....बड़ी बड़ी मुश्किल में अड़िग रहता है...बिना विचलित हुए.. !वो क्या कहतें है....प्रक्टिकल सोंच रखता है! उसी सोंच का नतीजा है कि, आज वो मुंबई का टाॅप क्लास डाँक्टर है!

हाँ माँ....सही कहा आपनें...मानव प्रक्टिकल सोंच रखता है....!हर बात में ख़ुद का मुनाफ़ा....!हर किसी से फायदा उठाना ही उसकी प्रवृत्ति है..! हर रिश्ते को...हर बंधन को...और हर मौके पर फायदा देखना और निकालना उसे बखूबी आता है! मुझसे शादी भी इसीलिए की....कि मेरा पापा के नाम का उपयोग कर सकें! मेरे पापा की वजह से ही तो इतनें कम समय में मुंबई जैसे शहर में खुद का हास्पीटल खोल पाया है.. मानव! 

सुगंधा जी ने, रिद्धि के आवाज़ में आक्रोश और तल्खी दोनों महसूस की। उन्हें पता था कि उनका बेटा अपनी बीवी को भी ब्लैंक चैक समझ भुना रहा होगा...!एक ऐसा चैक, न जिसमे अमाउंट की ही लिमिट है और न ही कोई एक्सपाईरी है!!! अब वो रिद्धि के सामने शर्मिंदा महसूस कर रहीं थीं! 

क्या कहें बहु को अब...ये सोंचकर उनके हाथ कांपने लगें!रिद्धि का ध्यान सुगंधा जी की ओर गया तो उसे आभास हुआ कि वो गुस्से गुस्से में क्या कह गई!

माँआआआआ.....! आप परेशान न हों, अब तो मैं मानव की परवाह ही नहीं करतीं हूँ! अब मैं और सुमेध.. अलग ही दुनिया में रहते है! मानव जितना पैसो के पीछे भागते है न, सुमेध उतना ही....दूर है...बेकार के आडम्बरों से! कहता है, माँ बनूँगा तो डाँक्टर ही...पर...मेरे हास्पीटल में मुफ्त इलाज़ दूँगा! आखिर पापा के कमाए पैसो को खर्च भी तो करना होगा.....!हँस पड़ी रिद्धि, सुमेध की बात बताते बताते....!

माँ....एकाएक गंभीर हो रिद्धि ने कहा, जिस दिन पापा का एक्सिडेंट हुआ था ना, मैंने मानव से बहुत कहा था कि घर चलें जाओ...माँ पापा को जरूरत है तुम्हारी...! पर न वो आया...न मुझें आने दिया आप लोगों के पास...! 

हममम....किससे शिकायत करूँ बेटा मैं??अपनें ही कोख जने ने छला है मुझें!पापा के रिटायर होने के बाद जो पैसे मिलें थे उससे ही घर का खर्च चलता है, पापा का इलाज़ होता है! इस घर का एक पोर्शन किराए पर दे रखा है...ताकि थोड़ी मदद मिल जाएं! कुल मिला कर हम दोनों का खर्च हम निकाल ही लेते हैं! पर जब उस दिन एक्सिडेंट हुआ, डाँक्टरों ने पाँच लाख जमा कराने कहा...उन्हें लगा था ब्रेन इंजरी है...!मेरे पास इतनें पैसे नहीं थे, इसलिए मानव को फोन किया था.....!!!

हमममम.....जानतीं हूँ मैं माँ...!वहीं तो थी..जब आपनें रोते बिलखते फोन किया था....!मानव ने उस कठिन समय में भी आपसे सौदा करना चाहा....पाँच लाख के बदले इस घर का....मानसी दीदी को उनके हक से बेदखल करनें का....!

हममम.....पर भगवान किसी न किसी को तो फरिश्ता बने कर भेजता ही है...! तुने तेरे पापा से कह कर पैसे दिलवाए....वो भी दस मिनट के अंदर अंदर...!सोंचती हूँ अगर उस दिन तू नहीं होतीं तो.....!!!

क्यूँ नहीं होतीं माँ....!आपकी बहु तो दुनिया की नजरों में हूँ...पर आपने और पापा ने कभी भी मुझें मानसी दीदी से कम नहीं समझा है!सुमेध के जन्म पर आपनें मेरी जितनी सेवा की न....मेरी सगी माँ होतीं न, तो वो भी नहीं कर पातीं!आप नहीं होतीं तो मैं नन्हें से सुमेध को कैसे संभालती!!बिन माँ की हूँ न....कुछ जानतीं ही नहीं थी.....!

हुशशशश.....दुबारा मत कहना....बिन माँ की हो....मैं हूँ  न तेरी माँ....!रिद्धि को अपनें गले से लगा लिया, सुगंधा जी ने 

आहहहाआआआ.....! हम तो कछु नहीं लगते आपके! दोनों ने मुझें तो बॉयकाट ही कर दिया.....!मानसी किचन
में दाखिल होते हुए झूठे गुस्से में बोलीं 

नहीं रे बाबा....तूझे बॉयकट कर अपनी शामत बुलानी है क्या....???सुगंधा जी हँसते हुए बोलीं...चलों चाय नाश्ता लेकर....पापा के पास बैठकर खायेंगे!

हममम.....! दोनों सुगंधा जी के पीछे पीछे चाय नाश्ते की ट्रे लेकर, शांतनु जी के रूम में आ गई!

चाय नाश्ते के बाद, मानसी और रिद्धि दोनों आपस में कुछ बात की और शांतनु जी के सामने एक पेपर कर दिया....! 

शांतनु जी ने आश्चर्य से दोनों की ओर देखा! 

क्या है ये??उन्होंने पूछा

आप ख़ुद देख लीजिए पापा....मानसी ने धीरे से कहा 

शांतनु जी ने पेपर लेकर पढ़ा!जैसे जैसे वो पेपर पढ़ते जा रहे थे, वैसे वैसे उनके चेहरे के हाव भाव बदलते जा रहे थे!उस कागज़ को पढ़ने के बाद वे शांती से बैठ गयें....जैसे मन में किसी बात का समर्थन कर रहें हो!

क्या मानव भी ये चाहता है, रिद्धि ?उन्होंने रिद्धि से पहलें पूछा...

रिद्धि ने उनके सवाल पर नजरें चुरा ली!

और तुम मानसी....तुम ये जो करना चाहतीं हो...क्या समर्थ जानता है इस बारें में....?

हाँ पापा, समर्थ जानतें हैं! उनके कहें अनुसार ही मैंने ये पेपर्स बनवाए हैं....!

पर इस तरह सब कुछ दे देना...कहाँ की समझदारी होंगी??आगें चल कर पछताना न पड़ जाएं!!शांतनु जी अभी तक मुतमईन नहीं हुए थे....

क्या हम पर पैसे खर्च करतें समय आप पछताए थें? क्या भाई से उम्मीदें लगाते वक्त आप पछताए थें??क्या माँ के गहने मेरी शादी में बेचते वक्त आप पछताए थें???नहीं ना पापा......फिर आपनें ये सोंच भी कैसे लिया कि इस घर से मेरा हक छोड़ कर मैं पछताऊँगी???

पापा....हालातों ने हमें ये करनें पर मजबूर कर दिया है...भाई के पास आलिशान फ्लैट है, मुंबई जैसे महानगर में, उस पर भी वो आपके इस छोटे से घर पर नज़र गड़ाए बैठे हैं....???किस चीज की कमी है उन्हें...जिसमें उन्होंने आपकी तकलीफ़ में आपकी मदद नहीं की....??भाई की छोटी सोंच....स्वार्थ की पूर्ति करना जानतीं है सिर्फ...!इस बार तो उनका प्लान कामयाब नहीं हुआ...पर कल का क्या भरोसा.....???

हाँ पापा जी....!मानसी दीदी ठीक कह रहीं है! मानव ने आप लोगों से ये घर छिन लिया, तो आप लोग़ दर दर की ठोकर खाने मजबूर हो जाएंगे! मानसी दीदी के घर आप जाएंगे नहीं और आपका बेटा...वो आप दोनों को अपनें घर में रखेगा नहीं....!रिद्धि ने, शांतनु जी को भविष्य का आइना दिखा दिया था!

पररर....फ़िर भी ये धोखा होंगा....मानव के साथ!सुगंधा जी ने घबराहट में कहा

नहीं माँ.....ये धोखा नहीं होगा....बल्कि एक सबक होंगा....हर उस संतान को जो माता पिता को, उनकी जरूरत के समय असहाय छोड़ देते हैं!मानसी गुस्से में बोलीं 

हाँ....ये सबक होगा....उन दहेज़ लोभी लोगों को, जो दहेज़ की आग में बहु को जला कर मार डालते है....! एक संदेश होगा इस समाज़ को कि, बहु को बेटी बना कर देखें....वो अपनी जान तक पर खेल जाएंगी....सास ससुर रूपी माता पिता को बचाने...! बड़ी से बड़ी चट्टान से लड़ जाएंगी...अपने सास ससुर का स्वाभिमान बचाने....!सगे माँ बाप से बढ़कर अपनें सास ससुर का साथ निभाने तैयार है वो.....ये इस दुनिया को बताने का काम करेंगा ये फैसला....! हाँ मैं मानतीं हूँ मैंने मानव से धोखे से ये पेपर साइन कराएं है....पर एक बेगैरत को धोखा देकर मैंने कुछ ग़लत नहीं किया है.....और इसका जो भी परिणाम होंगा....मैं भुगतने को तैयार हूँ....!!!!दृढ़ निश्चय के साथ रिद्धि ने कहा 

मानसी और रिद्धि की बात सुन, शांतनु जी और सुगंधा जी दोंनो की आँखो से झर झर आँसू बह उठें! 

देखा सुगंधा....वे लोग़ मूर्ख होते हैं जो बेटी को बोझ समझते हैं! बेटियाँ तो घर की लक्ष्मी होती हैं....!पिछले जन्म में हमने मोती दान किये होंगे जो हमें ऐसी बेटियां मिली है.....!!आँसू पोंछते हुए शांतनु जी ने कहा 

हमममम....सही कहा जी आपनें! कहाँ से लायी हैं इतना धीरज ये दोनों??आज इस एक नया अध्याय खुला है.....एक नई परिभाषा गढ़ दी है, इन दोनों ने!अब कोई चिंता नहीं किसी बात की! सही मायनों में, ये साबित हो गया है कि.....घर की लक्ष्मी होती हैं....बेटियां!!!

तो इसी बात पर खीर हो जाएं....!!!शांतनु जी ने बात का रूख मोड़ते हुए कहा

बिलकुल नहींईईई.....!हर वक्त मीठा खाना सूझता है न आपकों.....???सुधरेंगें नहीं ना आप....??सुगंधा जी ने गुस्सा करतें हुए कहा

बिलकुल नहीं ....क्यूँकि.....

तू सोलह बरस की....
मैं सतरह बरस का....
तू सोलह बरस की....
मैं हूँ सतरह बरस का...!

एक दो बरस ज़रा दूर रहनाआआआ.... 
कुछ हो गया तो फ़िर ना केहना... !!!!

रिद्धि और मानसी ने सुर से सुर  मिला दियें और सुगंधा जी...शर्म के मारे....शांतनु जी के सीने में जा छुपी....!चारों की सम्मिलित हंसी ने आज सुगंधा जी को जन्मदिन का सच्चा उपहार दे दिया था... सच्चा...और अनमोल उपहार!



                         《《समाप्त》》

 मौलिक एवं स्वरचित रचना,
नेहा चौधरी द्वारा

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8 Comments

kashish

07-Feb-2023 08:23 PM

nice

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Babita patel

04-Feb-2023 02:56 PM

nice one

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Niraj Pandey

09-Oct-2021 04:17 PM

बहुत खूब

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